
पढ़िए देवभूमि मंथन के माध्यम से धर्म क्रांति के सुझाव
किसी तर्कशास्त्री ने साधु से प्रश्न किया – अगर भगवान सब जगह है तो फिर मंदिर या तीर्थ क्यों जायें?
साधु : भगवान हैं तो सब जगह लेकिन क्या तुम्हें दिखते हैं सब जगह?
तर्कशास्त्री: नहीं
साधु: बस इसीलिए
तर्कशास्त्री: मैं समझा नहीं
साधु: देखो, तुम तर्कशास्त्री हो तो वैसा ही प्रश्न पूछोगे जैसा तुमने पूछा, कि दर्शन करने कहीं और क्यों जायें। लेकिन यदि तुम तर्कशास्त्री नहीं भावुक या शायर होते तो कदाचित यह भी कह देते कि नशे का जाम पीना ही मेरी इबादत है, मधुशाला ही मेरा मंदिर है। और कोई पेटू होते तो कदाचित कह देते कि मेरे लिये तो पेट पूजा ही वास्तविक पूजा है क्योंकि मेरी आत्मा को तृप्त करती है, रैस्टोरेंट ही मेरा तीर्थ और बटर चिकन ही मेरे लिए प्रसाद। और यदि कोई अति कामुक व्यक्ति होते तो किसी वैश्या से भी कह देते कि मेरे लिये तो तू ही सब कुछ है, प्रेम ही मेरी पूजा है और तू ही मेरी प्रिय मूर्ति है।
लेकिन क्या नशेड़ी नशा उतरने के बाद मुफ्त में मधुशाला की सफाई और मुफ्त में अन्य ग्राहकों की सेवा करता? अपने मंदिर के प्रति श्रद्धावश? क्या पेटू रैस्टोरैंट में कबाब खाकर मुफ्त में वहां के बरतन मांजता? क्या कामुक व्यक्ति वैश्या के साथ संबंध बनाने के बाद उसके पालन पोषण और रहन सहन की जिम्मेदारी स्वयं उठा लेता? ऐसा होना दुर्लभ घटना है । ऐसी जगहों पर जाने का मुख्य उद्देश्य केवल भोग है। यहां भक्ति देखना या दिखाना केवल बुरी लतों को प्रतिष्ठा दिलाकर स्वयं के व्यवहार को औचित्य प्रदान करने का प्रयत्न मात्र है। मंदिर या तीर्थ में ऐडिक्शन की संतुष्टि के लिये या भोग करने के लिए नहीं जाते। भगवान और भगवती के दर्शन ही ध्येय होता है, वही किया जाता है और वही बताया जाता है। ऐसा नहीं कि किया कुछ और परंतु बताया कुछ और। वहां विरोधाभास नहीं होता इसलिए भगवान और भगवती ये जानते हैं कि ये व्यक्ति हमें मूर्ख नहीं समझता, सच्ची श्रद्धा है इसलिए आया है। इसलिए ऐसे व्यक्ति के लिये भगवान और भगवती की उपस्थिति की अनुभूति हर स्थान पर करने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं, और देर सबेर उस अनुभूति का होना आरंभ होता है।
तर्कशास्त्री: फिर क्या होता है?
साधु: तरक्की, सच्ची तरक्की।
तर्कशास्त्री लोट गया, साधु लोटपोट हो गया, जो हो गया सो हो गया, अब तर्क से आगे बढ़कर तरक्की करो।
शशिधर बलूनी (धर्म क्रांति)
बिलकुल सत्य और सटीक विश्लेषण किया है आदरणीय महानुभाव जी ने।
कुतर्कियो और विधर्मियो को आपतिजनक तर्क करने पर सही और सटीक उत्तर देने हेतु, महान भारतीय सांस्कृतिक और परंपरा के अनुयायियों को सदेव तर्कशील रहकर अपने धर्म की रक्षा हेतु सदेव तत्पर और सजग रहना ही चाहिए।
किंतु इसके लिए नित्य पुस्तको का अध्ययन और स्वाध्याय परम आवश्यक है।
साधुवाद