
एक सच्चे सामान्य समाजसेवी का जन्म समाज में हो रही कुरीतियों,गरीबी,हिंसा , वंचित/नारियों /बाल शोषण आदि वृति और घटनाओं से आहत होने, समाज में नैतिक मूल्यों के पतन,धर्म,संस्कृति और महान परम्पराओ पर लगातार हो रहे आघात,शिक्षा के प्रसार,असहाय रोगी,वृद्धजन आदि की सेवा, पर्यावरण संरक्षण आदि अनेक शुभ विचारों की प्रेरणा से होता है।।
उपरोक्त मनोभाव के कारण ही राजनीतिक समाज सेवी का भी जन्म होता है इसमें संदेह नहीं होना चाहिए।।
*तो फिर दोनों में भेद क्या है ?*
सामान्य समाज सेवी संसार में दुख, पीड़ा, अराजगता और शोषित वर्ग अथवा समाज के रक्षण और सेवा हेतु या तो बिना किसी अन्य के सहयोग से अथवा समाज में अपने जैसी सेवा प्रवृति वाले लोगों के साथ मिलकर निस्वार्थ भाव से स्वयं के अर्जित धन,समय,संबंधों,ज्ञान,संपति से समाज के बहुयामी उत्थान हेतु बिना किसी सरकारी सहयोग से सेवा में प्रवृत्त होता है।
अर्थात ऐसा समाज सेवी निस्वार्थ ,त्याग और समर्पण की शुद्ध भावना से प्रेरित होकर ही सामाजिक कार्यों को करता है।।
सामान्य समाजसेवी आभाव होने पर भी किसी ना किसी रूप में अपने सामाजिक कार्यों को संपादित करता रहता है, उसे किसी उचित समय की प्रतिक्षा नहीं करनी पड़ती।
ऐसा व्यक्ति स्वयं भी प्रेरित रहता है और समाज के अन्य वर्गों को भी हर समय प्रेरित और जागरूक करता रहता है,उसे किसी मंच,विज्ञापन,स्वयं के सम्मान और विरोधियों की चिंता नहीं होती। अतः ऐसा व्यक्ति समाज के लिए शुभता लाता है।
किन्तु आजकल समाज सेवा के नाम पर अनेकों ट्रस्ट, समितियां, फाउंडेशन आदि बनाकर केवल सेवा के नाम पर धन उगाही या टैक्स पर छूट के नाम पर वित्त का गोरखधंधा चरम पर है, नाम का नाम और दाम के दाम । हां, यह भी सत्य है की इस प्रकार के सभी एनजीओ और उनके समाज सेवी भ्रष्टाचारी हैं किंतु ऐसे एनजीओ संस्थानों की संख्या बहुत कम है तथा निश्चित ही यह देशव्यापी ऑडिट और जांच का विषय बनना चाहिए। इस प्रकार के समाज सेवी भी वास्तव में समाज सेवी नही हैं। इनका एक मात्र उद्देश्य मात अपने वित,राजनीतिक पहचान और प्रतिष्ठा प्राप्त करने के अतिरिक्त कुछ नहीं है। समाज को इनकी पहचान कर इनका उचित बहिष्कार करना चाहिए।
इसी प्रकार एक राजनीतिक समाज सेवी का जन्म भी ठीक वैसी ही मनोदशा और प्रवृति से होता है जैसे सामान्य समाज सेवी की।
किंतु ऐसा समाज सेवी धन अथवा सहयोग के अभाव में राजनीतिक के मार्ग से संविधानिक पद प्राप्त कर केंद्र अथवा राज्य सरकारों से वित्तीय और अन्य व्यवस्था कर समाज के हित और सेवा की पूर्ति करता है।। ऐसा राजनीतिक समाज सेवी भी निस्वार्थ रहकर अपने स्वयं के हितों की पूर्ति ना करके केवल समाज के हितों की ही रक्षा करता है।।
समाज सेवी कोई भी हो किंतु उसने निस्वार्थ सेवा भाव तभी तक रहता है जब तक वह व्यभिचार,व्यसनों तथा परपुरुष अथवा परस्त्रीगमन, से दूर रहता है,उसकी वाणी पवित्र और ह्रदय सदा दूसरों के प्रति द्रवित और आद्र रहता है।
परंतु , ऐसे समाज सेवियों से सामान्यता समाज के ही लोग दूरी बनाएं रख असहयोग की भूमिका में रहते है क्यों इसे लोग चकाचौंध दिखाने में दक्ष नहीं होते।
किंतु , सत्य और हितकर यही है की उपरोक्त सब सद गुणों के ना होने पर अन्य को बहुरुपिया और समाज के लिए घातक जानकर उससे दूर ही रहना चाहिए।
*जब सामान्य और राजनीतिक समाज सेवी एक जैसे है तो केवल राजनीति के लोगों को ही बुरा क्यों बोला जाता है ?*
यह हमारा भ्रम है की प्रत्येक राजनीतिज्ञ को बुरा मानकर उसे चोर, डाकू,लुटेरा या कुछ और कहकर अपमानित किया जाता है।
समाज केवल उसी राजनीतिज्ञ की निंदा करता है जिसमे निमलिखित लक्षण पाए जाते हैं। :
जो अपने घर की स्त्रियों अथवा पुरुषों को तो अपनी हर राजनीतिक,सामाजिक आदि गतिविधियों से तो दूर रखता हो, पर अन्य समाज के स्त्री अथवा पुरुषों की भीड़ जमा करने हेतु समय समय पर आवाहन करता है।।
इसका क्या अर्थ लगाया जा सकता है ? यह समाज के सभी बुद्धिजीवियों को स्वयं अपनी प्रज्ञा का प्रयोग कर उचित निर्णय लेना चाहिए।। क्योंकि हमारा मानना तो यही है की यदि हम कोई अच्छा या शुभ काम करें तो सर्वप्रथम हमारा परिवार केवल प्रतिकूल परिस्थितियों को छोड़कर हमारे साथ खड़ा दिखाई दे तो फिर राजनीति की सभाओं में स्वयं के परिवार के स्त्री पुरषों की भागेदारी क्यों नहीं??
जो अपने परिवार को संगठित या प्रेरित नहीं कर सकता वो कैसे किसी समाज का नेतृत्व कर सेवा कर सकता है ? हां , राजनीतिक लोगों द्वारा चुनाव के समय राजनैतिक दलों से टिकट मांगने में अपने परिवार के अतिरिक्त अन्य किसी का चिंतन नहीं रहता !!क्या अन्य केवल प्रयोग की सामग्री हैं ???
ऐसा व्यक्ति जो पल पल हर बात पर अमर्यादित वाणी (गाली गलोच) बोलता हो उसे कैसे माने की उसमे दूसरे स्त्री पुरुषों और उनके बालकों के प्रति आदर और सम्मान की भावना होगी क्योंकि जो भी गाली दी जाती हैं उनमें काम और वासना का ही दृश्य तो अवलोकन होता है ? क्या ऐसा नहीं है?
मनोविज्ञान शास्त्र के अनुसार
जैसी जिसकी वाणी होती है वास्तव में वैसी ही उसके मन की वृति होती तथा समय आने पर वह उसी वृति के अनुसार कार्य करता है।
ऐसा व्यक्ति पद पाने के बाद उसी समाज में जिनके माध्यम से उसे पद मिला फिर अपने कार्यकाल में दिखाई नहीं देता। हां, उसी के आचरण वाले उसे कभी भी मिल सकते है जिसका परिणाम समाज के अन्य लोगों द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि और उसके चमचों को प्रणाम किए बिना सेवा / सुविधा प्राप्त नहीं होती।।
जो व्यक्ति पद प्राप्त होने पर नागरिकों को सुविधा देने में सफल नहीं हो पाता, ना ही समाज को संतुष्ट कर पता है, वह कैसे चुनाव से कुछ माह पूर्व लाखों, करोड़ों का कार्य अपने स्वयं के धन से करवाने लगता है ?
क्या कोई अपनी संपत्ति समाज के हित मे चुनाव से पूर्व लगाए तो उससे पूछना नही चाहिए की आपके पास पद मे रहते हुए धन की कमी थी तो अचानक इतना धन अब कैसे आया?
और , जब आपके पास पर्याप्त धन है तो समाज सेवा तो आप बिना राजनीति में आए भी कर सकते है!!
ईमानदार संविधानिक पद का व्यक्ति यदि सरकार से प्राप्त संसाधनों का सत्य भाव अपने कार्यकाल में सेवा और विकास कार्यों में प्रयोग कर ले तो समाज स्वयं संतुष्ट हो जायेगा।।
चुनाव से पूर्व अपना स्वयं का धन व्यय करने वाला राजनेता क्या चक्रवर्ती ब्याज के साथ सता पर आने पर अपनी वसूली नहीं करेगा ? ऐसा कैसे हो सकता है? यदि करना ही है तो पूरे कार्यकाल मे भी अपने निजी धन से सेवा करने से किसने रोका हैं??
कदाचित, समाज के ही कुछ स्वार्थी,लालची तथा व्यसनी लोगों का समर्थन मिलने और इनके द्वारा ऐसे धूर्त तथाथित समाज सेवी लोगों का महिमा मंडन करके समाज के अन्य भोले भाले लोगों (जो घर से भी नही निकल पाते) को दिग भ्रमित कर वास्तविक अच्छे राजनीतिक समाज सेवक उचित पद तक नहीं पहुंच पा रहे यह एक गंभीर विषय है !!!
चिंतन अवश्य कीजियेगा।
ऐसे नालायक राजनीतिक समाज सेवी चुनाव से पूर्व समाज के व्यसनी,शराबी,कबाबी,लालची, मंद बुद्धि तथा अराजक लोगों की खोज करके अलग अलग समूह बनाते हैं।
कई समूह बन जाने पर अलग अलग समय और स्थानों पर ऐसे दूषित लोगों को शराब,कबाब और शबाब उपलब्ध तब तक कराते हैं जब तक चुनाव नहीं होते। अब यही दूषित प्रवृत्ति के लोग एहसान तले दबकर समाज को भ्रमित,असंगठित करने का कार्य करते हैं ताकि इनके निजी स्वार्थ की पूर्ति होती रहे।
कमाल तो इस बात का है के समाज सब कुछ जानकर और यह मानकर की आधुनिक युग में यह सामान्य व्यवहार है कैसे मूक और मौन रहता है । क्या है स्वयं में हमारा नकारापन सिद्ध नहीं करता ????
अगर यह सामान्य व्यवहार है तो क्यों अपने बच्चों को हम उपरोक्त वर्णित दूषित प्रवृत्तियों से दूर रखने का प्रयास कर रहे हैं?
क्या नैतिकता कब तक होनी चाहिए इसकी कोई आयु निर्धारित है? या हम करें तो सही और यही हमारे बच्चे करें तो चरित्रहीनता ?
हमे स्वयं को इस मकड़जाल से निकालना ही चाहिए वरना किसी भी राजनितज्ञ को दोष देने या उसे बुरा भला कहने का हमे कोई अधिकार नहीं है।।
ऐसे तथकाधित समाज सेवी के साथ चुनाव से पहले जो समूह रहता है, गौर से अनुसंधान करने पर स्वयं ज्ञात हो जाता है की ये समाज के विपरीत किस कलुषित अंग विचारधारा से हैं। वास्तव में सब जानते तो हैं पर विरोध की अगवाई करके बुरा बने कौन ??
इनके अनुयाई अधिकतर राजनीति मे पद पाने के इच्छुक, धन के सेवक और अपने स्वामी के द्वारा सता पाने पर कमीशन, ठेका,अपने निजी संस्थानों का रजिस्ट्रेशन या उनके वितार, प्रतिष्ठा पाने की भावना मात्र से ही इनका सहयोग करते हैं, इनको समाज, राज्य और राष्ट्र में कोई रुचि नहीं रहती पर तस्वीरों का इनके पास ऐसा खजाना रहता है की आम जनमानस सोचता है की यही राष्ट्र का सम्पूर्ण भार अपने नाजुक कंधों पर उठाए हुए हैं। ।
मेरा अनुरोध है की संपूर्ण भारतीय समाज सार्वभोम सेवा और सहयोग की भावना से एकत्र होकर शुद्ध अंतः करण से साधु व्यक्तिव वाले सामान्य समाज सेवी तथा राजनीतिक समाज सेवी को पहचानने का प्रयास कर अपनी उचित भागीदारी सुनिश्चित कर यथोचित कर्तव्य का परिपालन करे । ।
हम तो आनन्द भोग लेंगे लेकिन भावी पीढ़ी का बंटाधार करके जीवन समाप्त हुआ तो अपयश तो हमारा होगा ही साथ ही अपने पितरों के प्रति भावी पीढ़ी के द्वारा श्रदा और आदर की मृत्यु होना भी निश्चित है।
जागो और जगाओ
भारत माता की जय
सुदर्शन डोबरियाल
धर्म क्रांति संकल्प से सिद्धि तक

गहरा विश्लेषण एक ऐसे सिस्टम का जो सरकार के समानांतर चलकर वो कमियां पूरी करने का दावा करता है जो सरकारी तंत्र ने इग्नोर कर दी। स्वतंत्रता के बाद से एनजीओ भरपूर मात्रा में बने परंतु ऐसा लगता है कि ज्यादातर अपने कार्यकर्ताओं के रोजगार का साधन ही हैं और कुछ को छोड़कर बाकी सभी नेता लोगों के लिये समाज सेवा सिर्फ राज करने का साधन। लेखक ने एक बार फिर गहरी नींद सोये समाज की आंखों पर शीतल जल छिड़कने का कर्तव्य निभाया है। लेकिन कहीं ऐसा तो नहीं कि ये सिर्फ आंखें मूंदकर सोने का नाटक मात्र हो? ऐसे में किसी की सद्भावना भी क्या कर लेगी? कब कर लेगी? तब तक तो फिर अंधेरी रात वापिस आ जाने का खतरा है।
All have to read, observe and think deeply